Women’s day special: जानिये महिलाओं के 10 अहम अधिकार

नई दिल्ली:(आज़ाद न्यूज़)। महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज कर रही हैं। जमीन से लेकर आसमान में ही नहीं अंतरिक्ष में भी उनके कदमों की छाप मौजूद है। जिस तरह से उनका कद बढ़ा है, तो अब वे अपने हक और उससे जुड़े कानूनों के बारे में भी जानना चाती हैं। International Women’s Day 2019 पर आइए जानें, घर से लेकर दफ्तर में एक महिला के क्या मुख्य अधिकार होते हैं?.

गोपनीयता का अधिकार
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत बलात्कार की शिकार महिला जिला मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज करवा सकती है और जब मामले की सुनवाई चल रही हो तो वहां किसी और व्यक्ति को उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है। वैकल्पिक रूप से वह एक ऐसे सुविधाजनक स्थान पर केवल एक पुलिस अधिकारी और महिला कांस्टेबल के साथ बयान रिकॉर्ड कर सकती है, जो भीड़ भरा नहीं हो और जहां किसी चौथे व्यक्ति के बयान को सुनने की आशंका न हो। पुलिस अधिकारियों के लिए एक महिला की निजता को बनाए रखना जरूरी है। यह भी जरूरी है कि बलात्कार पीड़िता का नाम और पहचान सार्वजनिक ना होने पाए।

नि:शुल्क कानूनी सहायता का अधिकार
अमूमन भारत में जब भी महिला अकेले पुलिस स्टेशन में अपना बयान दर्ज कराने जाती है तो उसके बयान को तोड़- मरोड़ कर लिखे जाने का खतरा रहता है। कई ऐसे मामले भी देखने को मिले हैं, जिनमें उसे अपमान झेलना पड़ा और शिकायत को दर्ज करने से मना कर दिया गया। एक महिला होने के नाते आपको यह पता होना चाहिए कि आपको भी कानूनी मदद लेने का अधिकार है और आप इसकी मांग कर सकती हैं। यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह आपको मुफ्त में कानूनी सहायता मुहैया कर सके।

देर से भी शिकायत दर्ज करने का अधिकार
बलात्कार या छेड़छाड़ की घटना के काफी समय बीत जाने के बावजूद पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती है। बलात्कार किसी भी महिला के लिए एक भयावह घटना है, इसलिए उसका सदमे में जाना और तुरंत इसकी रिपोर्ट ना लिखवाना एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। वह अपनी सुरक्षा और प्रतिष्ठा के लिए डर सकती है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि बलात्कार या छेड़छाड़ की घटना होने और शिकायत दर्ज करने के बीच काफी वक्त बीत जाने के बाद भी एक महिला अपने खिलाफ यौन अपराध का मामला दर्ज करा सकती है।

सुरक्षित कार्यस्थल का अधिकार
अधिक से अधिक महिलाओं के सार्वजनिक क्षेत्र में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु यह सबसे अधिक प्रासंगिक कानूनों में से एक है। प्रत्येक ऑफिस में एक यौन उत्पीड़न शिकायत समिति बनाना नियोक्ता का कर्तव्य है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी एक दिशा-निर्देश के अनुसार यह भी जरूरी है कि समिति का नेतृत्व एक महिला करे और सदस्यों के तौर पर उसमें पचास फीसदी महिलाएं ही शामिल हों। साथ ही, समिति के सदस्यों में से एक महिला कल्याण समूह से भी हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप एक स्थायी कर्मचारी हैं या नहीं।

यहां तक कि एक इंटर्न, पार्ट-टाइम कर्मचारी, ऑफिस में आने वाली कोई महिला या ऑफिस में साक्षात्कार के लिए गई महिला का भी उत्पीड़न किया गया है तो वह भी इस समिति के समक्ष शिकायत दर्ज करवा सकती है। ऑफिस में उत्पीड़न की शिकार महिला घटना के तीन महीने के भीतर इस समिति को लिखित शिकायत दे सकती है। यदि आपकी कंपनी में दस या अधिक कर्मचारी हैं और उनमें से केवल एक महिला है तो भी आपकी कंपनी के लिए इस समिति का गठन करना आवश्यक है। हालांकि, ऐसी किसी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति में, जहां यह समिति मौजूद नहीं है या आपको लगता है कि समिति आपका बचाव नहीं करेगी तो आप सीधे जिला स्तर पर मौजूद स्थानीय शिकायत समिति से संपर्क कर सकती हैं। जरूरी नहीं कि यह शिकायत आप ही करें। आपकी ओर से कोई दूसरा व्यक्ति भी यह शिकायत कर सकता है।

जीरो एफआईआर का अधिकार
एक महिला को ईमेल या पंजीकृत डाक के माध्यम से शिकायत दर्ज करने का विशेष अधिकार है। यदि किसी कारणवश वह पुलिस स्टेशन नहीं जा सकती है, तो वह एक पंजीकृत डाक के माध्यम से लिखित शिकायत भेज सकती है, जो पुलिस उपायुक्त या पुलिस आयुक्त के स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को संबोधित की गई हो। इसके अलावा, एक बलात्कार पीड़िता जीरो एफआईआर के तहत किसी भी पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज कर सकती है। कोई भी पुलिस स्टेशन इस बहाने से एफआईआर दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकता है कि वह क्षेत्र उनके दायरे में नहीं आता।

घरेलू हिंसा से सुरक्षा का अधिकार
शादी नहीं टूटनी चाहिए, यह विचार भारतीय महिलाओं के जेहन में इतना जड़ें जमा चुका है कि वे अकसर बिना आवाज उठाए घरेलू हिंसा झेलती रहती हैं। आईपीसी की धारा 498-ए दहेज संबंधित हत्या की निंदा करती है। इसके अलावा दहेज अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 में न केवल दहेज देने या लेने, बल्कि दहेज मांगने के लिए भी दंड का प्रावधान है। इस धारा के तहत एक बार इस पर दर्ज की गई एफआईआर इसे गैर-जमानती अपराध बना देती है। शारीरिक, मौखिक, आर्थिक, यौन संबंधी या अन्य किसी प्रकार का दुर्व्यवहार धारा 498-एक के तहत आता है। आईपीसी की इस धारा के अलावा, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भी महिलाओं को उचित स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी मदद, परामर्श और आश्रय गृह संबंधित मामलों में मदद करता है।

इंटरनेट पर सुरक्षा का अधिकार
आपकी सहमति के बिना आपकी तस्वीर या वीडियो, इंटरनेट पर अपलोड करना अपराध है। किसी भी माध्यम से इंटरनेट या व्हाट्सएप पर साझा की गई आपत्तिजनक या खराब तस्वीरें या वीडियोज किसी भी महिला के लिए बुरे सपने से कम नहीं है। आपको उस वेबसाइट से सीधे संपर्क करने की आवश्यकता है, जिसने आपकी तस्वीर या वीडियो को प्रकाशित किया है। ये वेबसाइट कानून के अधीन हैं और इनका अनुपालन करने के लिए बाध्य भी। आप न्यायालय से एक इंजेक्शन आदेश प्राप्त करने का विकल्प भी चुन सकती हैं, ताकि आगे आपकी तस्वीरों और वीडियो को प्रकाशित न किया जाए। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 67 और 66-ई बिना किसी भी व्यक्ति की अनुमति के उसके निजी क्षणों की तस्वीर को खींचने, प्रकाशित या प्रसारित करने को निषेध करती  है। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 की धारा 354-सी के तहत किसी महिला की निजी तस्वीर को बिना अनुमति के खींचना या साझा करना अपराध माना जाता है।

समान वेतन का अधिकार
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 समान कार्य के लिए पुरुष और महिला को समान भुगतान का प्रावधान करता है। यह भर्ती वसेवा शर्तों में महिलाओं के खिलाफ लिंग के आधार पर भेदभाव को रोकता है।

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 मानवीयता और चिकित्सा के आधार पर पंजीकृत चिकित्सकों को गर्भपात का अधिकार प्रदान करता है। लिंग चयन प्रतिबंध अधिनियम,1994 गर्भधारण से पहले या उसके बाद लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाता है। यही कानून कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रसव से पहले लिंग निर्धारण से जुड़े टेस्ट पर भी प्रतिबंध लगाता है। भू्रण हत्या को रोकने में यह कानून उपयोगी है।

प्रॉपर्टी में महिलाओं का अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के मुताबिक लड़की चाहे कुंवारी हो या शादीशुदा, वह पिता की संपत्ति में हिस्सेदार मानी जाएगी। इतना ही नहीं उसे पिता की संपत्ति का प्रबंधक भी बनाया जा सकता है। इस संशोधन के तहत बेटियों को वही अधिकार दिए गए, जो पहले बेटों तक सीमित थे। हालांकि बेटियों को इस संशोधन का लाभ तभी मिलेगा, जब उनके पिता का निधन 9 सितंबर 2005 के बाद हुआ हो। इसके अलावा बेटी सहभागीदार तभी बन सकती है, जब पिता और बेटी दोनों 9 सितंबर 2005 को जीवित हों।

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