मजदूर यूनियनों की तरफ से भारत बंद – क्या चाहते हैं वो ?

मोदी सरकार के विनिवेश, निजीकरण और श्रम सुधार नीतियों के खिलाफ 10 केंद्रीय व्यापार संघ बुधवार को देशव्यापी आम हड़ताल करेंगे. सीपीएम से जुड़े CITU ने दावा किया है कि इस देशव्यापी हड़ताल में करीब 25 करोड़ कर्मचारी हिस्सा लेंगे. इसमें INTUC, AITUC, HMS, CITU, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF, UTUC के साथ-साथ क्षेत्रीय स्वतंत्र महासंघों और संघों के कार्यकर्ता आम हड़ताल में भाग लेंगे. सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ हड़ताल का आह्वान किया गया हैं. विभिन्न संघों और फेडरेशनों ने पिछले साल सितंबर में आठ जनवरी, 2020 को हड़ताल पर जाने की घोषणा की थी.

मजदूर यूनियनों का आरोप है कि सरकार श्रम कानून में बदलाव करके उनके अधिकारों का हनन कर रही है और लेबर कोड के नाम पर मौजूदा व्यवस्था को पूरी तरह ख़त्म किया जा रहा है.ट्रेड यूनियनों की प्रमुख मांगों में बेरोजगारी, न्यूनतम मजदूरी तय करना और सामाजिक सुरक्षा तय करना शामिल हैं. यूनियन सभी श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी 21 हज़ार रुपये प्रति महीने तय करने की मांग कर रही हैं. ट्रेड यूनियन नए इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड बिल को ‘मालिकों के पक्ष में और मजदूरों के ख़िलाफ़’ बता रहे हैं.

बीबीसी संवाददाता मानसी दाश से बातचीत में भारतीय ट्रेड यूनियनों की फ़ेडरेशन सीटू के महासचिव तपन सेन ने कहा, ”हमारी 12 सूत्रीय मांगें हैं. मुख्य मांगों में कम से कम मजदूरी 21 हज़ार रुपये प्रतिमाह करना. समान काम के लिए समान वेतन, ख़ासकर ठेका मज़दूरों को जो एक ही काम में हैं लेकिन रेगुलर कामगारों को आधे से कम वेतन मिलता है और कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती.उन्होंने कहा कि महंगाई को कंट्रोल किया जाए और जरूरी चीज़ों की बढ़ती कीमतों पर सरकार को रोक लगानी चाहिए. ये हड़ताल रेलवे, पेट्रोलियम, डिफेंस, इंश्योरेंस सेक्टर के निजीकरण के ख़िलाफ़ भी हैं.

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