
मुम्बई: क्रिकेट की दुनिया में रिकॉर्ड बनाने का सिलसिला बहुत पुराना हैं اरिकॉर्ड का रिश्ता क्रिकेट के वजूद के साथ ही जुड़ा हुआ है। क्रिकेट के हर मैच में कोई ना कोई रिकॉर्ड बनता ही है। कपिल देव , अज़हरुद्दीन से लेकर विराट कोहली और पृध्वी शॉ तक के यहाँ हिन्दुस्तानी क्रिकेटरों का एक से बढ़ के एक रिकॉर्ड मौजूद है। अभी कुछ ही दिन पहले दुबई में सीनियर टीम इंडिया बांग्लादेश को मात देकर एशिया कप चैंपियन बनी और कई नए नए रिकार्ड्स हिंदुस्तानी क्रिकेट की झोली में आये। उसी नक्शे कदम पर चलते हुए भारत की जूनियर क्रिकेट टीम ने भी कमाल कर दिखाया. रविवार को उसने मेजबान बांग्लादेश को रौंद कर अंडर-19 एशिया कप पर कब्जा जमाया. फाइनल में भारतीय टीम को 304/3 के विशाल स्कोर तक पहुंचाने में यशस्वी जायसवाल ने 113 गेंदों में 85 रनों की अहम पारी खेली.
पूरे टूर्नामेंट में 79.50 की औसत से 318 रन बनाने वाले यशस्वी ‘प्लेयर ऑफ द सीरीज’ रहे और क्रिकेट के दर्शको जीत लिया। 17 साल का यह सलामी बल्लेबाज पहली बार तब सुर्खियों में आया, जब उसने अगस्त में श्रीलंका दौरे के दौरान नाबाद 114 रनों की पारी खेली. जिसकी बदौलत अंडर-19 भारतीय टीम यूथ वनडे सीरीज में श्रीलंकाई टीम को 3-2 से मात देने में कामयाब हुई. उसके कोच ज्वाला सिंह का दावा है कि बाएं हाथ के बल्लेबाज यशस्वी ने पिछले तीन साल में 51 शतक जमाए हैं और अपने लेग स्पिन के सहारे 300 से ज्यादा विकेट भी चटकाए हैं. उनका मानना है कि यशस्वी इसी तरह बड़े टूर्नामेंटों में रन बनाता रहा, तो उसे टीम इंडिया में जगह बनाने से कोई नहीं रोक सकता. उत्तर प्रदेश के भदोही के इस किशोर के लिए क्रिकेटर बनने की राह आसान नहीं रही. जब वह 2012 में क्रिकेट का सपना संजोए अपने चाचा के पास मुंबई पहुंचा, तो वह महज 11 साल का था. चाचा के पास इतना बड़ा घर नहीं था कि वह उसे भी उसमें रख सके. वह एक डेयरी दुकान में अपनी रातें गुजारता था.
मीडिया में छपी खबर के अनुसार क्रिकेट खेलने के बाद वह थक जाता था. एक दिन दुकानदार ने यह कहते हुए उसके सामान फेंक दिए कि वह कुछ नहीं करता है और सोया रहता है. आखिरकार उसके चाचा के कहने पर आजाद मैदान ग्राउंड स्थित मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के टेंट में उसे रहने के लिए जगह मिल गई. इसी बीच उसे अपना खर्च चलाने के लिए अलग तरह की मशक्कत करनी पड़ी. यशस्वी ने क्रिकइंफो से कहा, ‘मैं यह सोचकर मुंबई आया था कि मुझे मुंबई से ही क्रिकेट खेलना है. मैं एक टेंट में रहता था, जहां बिजली, वॉशरूम या पानी की सुविधा नहीं थी. दो वक्त के खाने के लिए फूड वेंडर के यहां काम करना शुरू कर दिया. रात में पानी पूरी (गोलगप्पे) बेचा करता था. कभी साथ खेलने वाले साथी आ जाते थे, तो उन्हें पानी पूरी खिलाने में बुरा अनुभव होता था. लेकिन यह काम मेरे लिए जरूरी था.’