निर्णय: रोज़ के फैसले तेज़ और बेहतर कैसे बनाएं
हर दिन छोटी-बड़ी चुनाौती आती हैं — क्या नया फोन लेना है, नौकरी बदलनी है या शाम का खाना क्या बनाना है? सही निर्णय सिर्फ सूझबूझ नहीं, एक आसान तरीका है जिसे आप आज़मा कर तुरंत सुधार महसूस कर सकते हैं। नीचे दिए गए कदम रोज़मर्रा और बड़े फैसलों दोनों में काम आते हैं।
फैसला लेने के नज़दीकी कदम
एक सफ़ल निर्णय का पहला काम है मकसद साफ़ करना। पूछिए: मैं यह क्यों कर रहा/रही हूँ? लक्ष्य स्पष्ट होने से अनावश्यक विकल्प खुद हट जाते हैं।
दूसरा, जरूरी जानकारी चुनिए — हर छोटी जानकारी का पीछा मत कीजिए। 80/20 नियम अपनाइए: 20% जानकारी अक्सर 80% असर देती है।
तीसरा, विकल्प लिखिए और उनकी सबसे बड़ी सकारात्मक व नकारात्मक बात पहचानिए। एक शीट पर लिखना दिमाग को साफ़ करता है और भावनाओं का शोर घटाता है।
चौथा, समय सीमा तय करिए। छोटा फैसला (5–30 मिनट), मध्यम (1–3 दिन), बड़ा फैसला (1–2 हफ्ते या अधिक)। समय सीमा न हो तो अनिश्चितता बढ़ती है और सोच घुटन बन जाती है।
गलतियों से बचने और व्यवहारिक सलाह
भावनात्मक चढ़ाव में बड़ा बदलाव न करें। खुशी, गुस्सा या डर से लिया गया फैसला अक्सर उलट जाता है। पहले 24 घंटे सोच लें, अगर संभव हो।
यदि फैसला उलटने योग्य है, तो जल्दी करिए। छोटे, कम जोखिम वाले निर्णयों के लिए परफेक्ट जानकारी का इंतजार करना समय की बर्बादी है।
बायस (पक्षपात) पहचानिए: क्या आप सिर्फ वही ढूँढ रहे हैं जो आपकी राय सही साबित करे? सवाल बदलिए — "क्या मेरी राय गलत साबित हो सकती है?" — इससे खुले विचार आते हैं।
जोखिम तो हर फैसले में होता है। उसे मापिए: सबसे खराब स्थिति क्या हो सकती है और क्या आप उसे संभाल सकते हैं? कई बार सबसे खराब परिणाम भी संभालने लायक होता है।
छोटी प्रैक्टिस आजमाइए: फोन खरीदने या रेस्तरां चुनने जैसे रोज़मर्रा के फैसलों में नया तरीका अपनाइए। अनुभव से पता चलता है कि कौन सा तरीका आपके लिए सटीक है।
आखिर में, फैसला लेने के बाद फॉलो-अप प्लान रखिए। कई समस्याएँ फैसले की नाकामी नहीं बल्कि उसके अमल की कमी से आती हैं। एक छोटा कदम और एक समय-सीमा तय करिए।
एक सरल प्रयोग करें: अगला छोटा फैसला (जैसे कौन-सा नाश्ता लें) 5 मिनट में लें और नोट करिए कि कितना अच्छा परिणाम हुआ। धीरे-धीरे बड़ी चीज़ों पर यही तरीका आज़माइए। फैसले बेहतर होंगे और तनाव कम होगा।