

रवीश कुमार
आपकी चुप्पी का हर दिन इम्तहान है. हर दिन आप ख़ुद से ही हार रहे हैं. ट्रोलिंग को राजनीतिक संरक्षण मिल जाए तो यह हम लोगों से भी ज़्यादा आम लोगों के ख़िलाफ़ हो जाती है. आम लोग ज़्यादा असुरक्षित हो जाते हैं. आईटी सेल एक संगठित गिरोह है. जो राजनीतिक संरक्षण, विचारधारा और अधकचरी सूचनाओं से लैस है.
गालियां देने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने वाले अफसर आशीष जोशी सस्पेंड
आशीष जोशी ने ट्रोलिंग करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया थागालियां और धमकियां देने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की बात करने वालों के लिए यह सूचना कैसी रहेगी. पिछले दिनों ख़बर आई थी कि देहरादून में कंट्रोलर ऑफ कम्युनिकेशन अकाउंट आशीष जोशी ने ट्रोल करने वालों के खिलाफ टेलीकॉम कंपनियों को निर्देश दिए हैं कि कार्रवाई करें. आशीष जोशी ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए पुलिस प्रमुखों को भी लिख दिया. यही नहीं, अपने ट्विटर हैंडल से एक ईमेल जारी कर दिया कि जो कोई भी फोन नंबर से किसी के साथ अभद्रता करता है, गालियां देता है, वो उन्हें लिख सकता है.
सार्वजनिक जीवन में अभद्रता के ख़िलाफ़ राय रखने वालों की यह बड़ी हार है
मोदी सरकार के दौर में आशीष जोशी पहले अफसर थे तो खुलकर जनता के बीच आए और उनकी मदद की बात की. उन्हें उसी दिन सस्पेंड कर दिया गया जिस दिन देश को एकजुट होकर गौरव रहने का संदेश दिया गया. उन्हें पत्रकारों को धमकाने और मां-बहन की गालियां देने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की सज़ा दी गई है. सार्वजनिक जीवन में अभद्रता के ख़िलाफ़ राय रखने वालों की यह बड़ी हार है. सरकार ने ऐसा करके सिस्टम को संदेश दिया है कि गाली देने वाले और धमकियां देने वाले हमारे लोग हैं. इनका कुछ नहीं होना चाहिए. उसकी यह कार्रवाई एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसर को हतोत्साहित करती है और लंपटों की जमात को उत्साहित करती है. कम से कम सरकार 26 फरवरी को एयर स्ट्राइक की राष्ट्रवादी आंधी की आड़ में यह कार्रवाई नहीं करती.
आशीष जोशी का अपराध क्या था?
आपकी चुप्पी का हर दिन इम्तहान है. हर दिन आप ख़ुद से ही हार रहे हैं. ट्रोलिंग को राजनीतिक संरक्षण मिल जाए तो यह हम लोगों से भी ज़्यादा आम लोगों के ख़िलाफ़ हो जाती है. आम लोग ज़्यादा असुरक्षित हो जाते हैं. आईटी सेल एक संगठित गिरोह है. जो राजनीतिक संरक्षण, विचारधारा और अधकचरी सूचनाओं से लैस है. आशीष जोशी का अपराध क्या था? अपने निष्क्रिय पद और नियमों को जागृत कर उन्होंने जनता को भरोसा देने की कोशिश की कि ऐसे आपराधिक तत्वों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है.
हाल ही में उत्तर प्रदेश में IPS जसवीर सिंह को सस्पेंड कर दिया गया. उन्हें मीडिया में बोलने और दफ्तर से अनधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने के आरोप में निलंबित किया गया. जसवीर सिंह को भी समाज भूल गया. वे एक ईमानदार अफसर माने जाते हैं. सांसद के रूप में योगी और विधायक राजा भैया के ख़िलाफ़ उनकी पुरानी कार्रवाई की सज़ा कई साल बाद दी गई है. दफ्तर से अनधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने पर सस्पेंड? इस आधार पर तो यूपी क्या किसी भी राज्य में हर दिन हज़ारों कर्मचारी सस्पेंड हो जाएं.
आशीष जोशी के लिए भी नियमों की गोलमोल व्याख्या की गई है. यह अफसर के इकबाल का अपमान है. आईएएस अफसरों का संगठन चाटुकारों का संगठन है. लोगों को चंदा कर एक झाल ख़रीदनी चाहिए. यह झाल आईएएस अफसरों के संगठन को दे देनी चाहिए ताकि वे सरकार के आगे बजाते रहें. अपने पतन को झाल के शोर में जश्न की तरह पेश करते रहें. आशीष जोशी जैसे अफसरों की ईमानदारी सीमा पर डटे एक सैनिक के साहस के बराबर है. अपना सब कुछ गंवाकर ईमानदार रहने की प्रक्रिया से गुज़र कर देखिए, पागल हो जाएंगे.
सीमाएं पहले से बेहतर सुरक्षित हैं तो सीमा के भीतर ध्यान दीजिए.
हम सब भारत से प्यार करते हैं. इस भारत से भी प्यार कीजिए जहां हर दिन सिस्टम को ध्वस्त किया जा रहा है. सीमाएं पहले से बेहतर सुरक्षित हैं तो सीमा के भीतर ध्यान दीजिए. राजनीतिक आचार-व्यवहार में गालियों और अफवाहों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. इसलिए कहता हूं कि भारत के लोकतंत्र में इम्तहान का वक्त उस जनता का है जो अपने नेताओं को सब कुछ सौंप कर लोकतंत्र को लेकर बेख़बर होने लगी थी. जो आशीष जोशी के साथ खड़े नहीं हो सकेंगे, उनके साथ भी कोई खड़ा नहीं होगा. एक दिन वे भी अकेले रह जाएंगे. ऐसा क्यों होता है कि ईमानदार अफ़सरों को जनता छोड़ देती है. क्या जनता भी उसे बेईमान और चाटुकार नहीं बनने की सज़ा देती है?
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
ndtv से इनपुट